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वर्णिक चतुष्पदी




वर्णिक चतुष्पदी

      मापनी-211,211,211,211


घातक है सहसा घटना सुन।

जान अजान चली जलती हुन।।

राम नहीं तब आवत जागत।

अंत बुरा दिखता सिर को धुन।।


मानस मारत है खुद को तब।

चित्त सहाय नहीं लगता अब।।

व्याकुलता बढ़ती नित आवत।

आस  निराश बढ़न्त सदा सब।।


सत्य यहीं लगता तब है कुछ।

घाट श्मशान धरा यह है कुछ।।

आकुल चिंतित व्यर्थ अनर्थ।

आवत बात नहीं हिय में कुछ।।





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2 Comments

Renu

23-Jan-2023 04:54 PM

👍👍🌺

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अदिति झा

21-Jan-2023 10:38 PM

Nice 👍🏼

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